झांसी। अंबेडकर के बाद भारतीय समाज में कांशी राम ने दलितों को एक सशक्त बुलंद आवाज दी। उन्होंने भारतीय समाज के रूढ़िवादी और ब्राह्मणवादी व्यवस्था को तोड़ने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन असफलताओं से सीखने के बाद बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की। उन्होंने अपना पूरा जीवन पिछड़े वर्ग के लोगों की उन्नति के लिए और उन्हें एक मजबूत और संगठित आवाज़ देने के लिए समर्पित कर दिया। वे आजीवन अविवाहित रहे। कांशी राम का जन्म पंजाब के रोरापुर में एक रैदासी सिख परिवार में हुआ था। अल्प शिक्षित होने के बाद भी कांशीराम के पिता ने अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दी। 1958 में ग्रजूएट होने के बाद पूना में रक्षा उत्पादन विभाग में सहायक वैज्ञानिक के पद पर नियुक्त हुए। 1965 में उन्होंने डॉ अम्बेडकर के जन्मदिन पर अवकाश रद्द करने के विरोध में संघर्ष किया। इससे इतने प्रेरित हुए कि उन्होंने संपूर्ण जातिवादी प्रथा और डॉ बी आर अम्बेडकर के कार्यो का गहन अध्ययन किया। सन 1971 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ी जाति और अल्पसंख्यक कर्मचारी कल्याण संस्था की स्थापना की। संस्था का मुख्य उद्देश लोगों को शिक्षित और जाति प्रथा के बारे में जागृत करना। बाद में 1973 में (बेकवार्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीस एम्प्लोई फेडरेशन) की स्थापना की, जिसका कार्यालय दिल्ली में भी शुरू किया गया। कांशी राम ने अपना प्रसार तंत्र मजबूत किया और लोगों को जाति प्रथा, भारत में इसकी उपज और अम्बेडकर के विचारों के बारे में जागरूक किया।
जीवन के मील के पत्थर :
सन 1980 में उन्होंने ‘अम्बेडकर मेला’ नाम से पद यात्रा शुरू।
इसमें अम्बेडकर के जीवन और उनके विचारों को चित्रों और कहानी के माध्यम से दर्शाया गया।
1984 में समानांतर दलित शोषित समाज संघर्ष समिति की स्थापना की।
1984 में ही बहुजन समाज पार्टी के नाम से राजनैतिक दल का गठन किया।
1986 में सामाजिक कार्यकर्ता से एक राजनेता के रूप में परिवर्तित किया।
1994 में उन्हें दिल का दौरा भी पड़ चुका था। दिमाग की नस में खून का गट्ठा जमने से 2003 में उन्हें दिमाग का दौरा पड़ा।
2004 के बाद ख़राब सेहत के चलते उन्होंने सार्वजनिक जीवन छोड़ दिया। 9 अक्टूबर 2006 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई।
कांशीराम : बहुजन समाज को एक धागे में पिरोने के लिए सुख छोड़, मिशन में कुर्बान कर दी जिंदगी